धूमधाम से की गई मां काली की वार्षिक पूजा

गया। कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनायी जाती है, इसी दिन काली पूजा भी होती है. अमावस्या की रात लोग पूरी श्रद्धा से मां काली की पूजा करते हैं.शहर के नवागढी मोहल्ले में काली पूजा पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।पंडाल को आर्कषण ढंग से सजाया गया। पुजारी अनुप पाण्डेय द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत पूजन व हवन किया गया।मौके पर पुजारी अनुप पांडेय ने बताया कि काली पूजा की क्या है मान्यता:मान्यता यह है कि मां काली ने चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ नाम के दैत्यों के अत्याचार से मुक्ति के लिए मां अंबे ने चंडी का रूप धारण कर इन राक्षसों को मार गिराया. उनमें से एक रक्तबीज नाम का राक्षस भी था, जिसके शरीर का एक भी बूंद जमीन पर पड़ने से उसी का एक दूसरा रूप पैदा हो जाता. रक्तबीज का अंत करने के लिए मां काली ने उसे मार कर उसके रक्त का पान कर लिया और रक्तबीज का अंत हो गया. राक्षसों का अंत करने के बाद भी देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब सृष्टि के सभी लोग घबरा गए कि यदि मां का क्रोध शांत नहीं हुआ तो दुनिया खत्म हो जाएगी. ऐसे में भगवान शिव, देवी को शांत करने के लिए जमीन पर लेट गए और माता का पैर जैसे ही शिव जी पर पड़ा उनकी जीभ बाहर निकल आई और वे बिल्कुल शांत हो गई. तब से काली पूजा की परंपरा शुरू हो गई, भक्त आज भी मां को उसी रूप में पूजते हैं. उनकी प्रतिमाओं में मां काली की जीभ बाहर की ओर निकली दिखती है.वहीं पूजन के उपरांत भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन किया गया।इस मौके पर अतुल कुमार सिन्हा,विनोद कुमार गुप्ता, विक्की कुमार,चंदन कुमार सिन्हा, गौतम कुमार, प्रकाश कुमार गुप्ता,सनोज कुमार,सहित कई सदस्य मौजूद थे.

सच भारत न्यूज संवाददाता प्रकाश कुमार