
विश्व शांति और मानवता के कल्याण हेतु श्रीलक्ष्मी नारायण चातुर्मास महायज्ञ उमता स्थित गोलोक धाम गोशाला आश्रम में आयोजित किया जा रहा है। जिसमें प्रतिदिन श्री श्री 1008 श्री स्वामी देवकीनंदन भारद्वाज जी महाराज के मुखारविंद से भक्तिरस की धारा बह रही है। बीते 17 जुलाई से प्रारंभ श्री लक्ष्मीनारायण चातुर्मास महायज्ञ का समापन आगामी 17 अक्तूबर को होगा। इस दौरान 13 अक्तूबर को कलश यात्रा के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। वहीं 14 अक्तूबर से 16 अक्तूबर तक यज्ञ पूजा, वेदी पूजा सहित विभिन्न वैदिक कर्मकांड किए जायेंगे। 17 अक्तूबर को पूर्णाहुति और विशाल भंडारा के साथ यज्ञ का समापन होगा।
गुरूवार की शाम अपने प्रवचन में आचार्य श्री देवकीनंदन महाराज ने कहा कि यज्ञ के बिना जगत का कल्याण नहीं हो सकता। यज्ञ के माध्यम से बौद्धिक और शारीरिक शुद्धिकरण की विस्तार होती है। सृष्टिचक्र में मनुष्य अपने कर्मों से वंचित होने के कारण अनेक प्रकार की पीड़ा और कष्ट उठाते हैं। मनुष्य अपने जीवन काल में जो दुखों को भोगता है, वह उसके कर्मों का फल है। इसलिए मानव जीवन में मनुष्य को सत्कर्म से विमुख नही होना चाहिए। उन्होंने भक्त प्रहलाद और भगवान नरसिंह का चरित्र लीला का वर्णन करते हुए कह कि अपने-अपने कर्मों के द्वारा ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। सत्य को परेशान किया जा सकता है, पर सत्य पराजित नहीं हो सकता। भगवान अपने भक्तों का सदैव रक्षा करते हैं। हिरण्यकश्यप के द्वारा अनेक प्रकार से अत्याचार भक्त प्रहलाद के ऊपर किया गया। परंतु प्रहलाद की जो भगवान में आस्था थी, उस आस्था में इतनी बड़ी शक्ति है कि प्रहलाद का बाल बांका भी नहीं हो पाया और भगवान नरसिंह को खंबे फाड़ कर प्रकट होना पड़ा। इसलिए मनुष्य को अपने धर्म में निष्ठा और अटल विश्वास रखनी चाहिए। जो व्यक्ति धर्म में निष्ठा रखते हैं उनका जीवन का सदैव मंगल होता है। धर्म निष्ठा के बाद भी जीवन में पीड़ा और कष्ट है तो आप पूर्व जन्मों का कर्म का प्रायश्चित भुगत रहे हैं। इसलिए सुख में भूलो ना तुम दुख में तड़पो ना तुम अपना रथ का सूमारक लगाते चलें, कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो। महाराज जी के द्वारा भजनों पर कथा सुन श्रोताओं मंत्र मुक्त हो गए।
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