
एक
तरह
जहां
23
जुलाई,1856-
स्वतंत्रता
हमारा
जन्म सिद्ध
अधिकार
है
का
सर्व
प्रथम
घोष
करने
वाले-
महान स्वतंत्रता
सेनानी,
लेखक,
पत्रकार,विचारक
लोकमान्य बालगंगाधर
तिलक
की
जन्म
जयंती
तो
दुसरी
तरफ़
23 जुलाई
1906-
नर
नाहर
अमर
शहीद
चंद्रशेखर
आजाद की
जन्म
जयंती
पर
भारतीय
स्वतंत्रता
संग्राम
के
महानतम क्रांतिकारियों
में
से
एक,
हिंदुस्तान
सोशलिस्ट
रिपब्लिकन आर्मी
के
कमांडर
इन
चीफ,
भारत
में
सशस्त्र
क्रांति
का इतिहास
जिनके
नाम
के
बगैर
लिखना
संभव
नहीं
है, जिनका
नाम
सुनने
से
ही
ब्रिटिश
हुकूमत
कांप
उठती
थी, चंद्रशेखर
आजाद
को
जन्म
जयंती
पर
पूरे
देश
वासियों
की तरफ
से
नमन
करते
हुए
बस
यही
कहना
चाहते
हैं
कि
हम सबको
गर्व
है
भारत
माता
के
ऐसे
सपूतों
पर,जिनके
बदौलत आज
हम
आजादी
की
खुली
हवा
में
सांस
ले
रहे
हैं।
निश्चित रूप
से
अब
समय
बदल
चुका
है
अखबारों
के
विज्ञापन क्रांतिकारियों
की
चर्चाओं
का
विज्ञापन
नहीं
देते।
विभिन्न समाचार
पत्रों
में
अन्य
प्रचार
की
भांति
यदि
जन्म
जयंती
के विज्ञापन
आते
तो
शायद
अच्छा
लगता
क्योंकि
भारतीय इतिहास
के
क्रांतिकारियों
के
सुनहरे
दीपक
देश
को
तब
तक रास्ता
दिखाते
रहेंगे
जब
तक
यहां
अत्याचार
गरीबी
अन्याय महिलाओं
का
शोषण
, भुखमरी,
जाति
पात
लिंग
भेद
और अन्य
तरीके
के
भेदभाव
कायम
है।
आज
समय
की
महती आवश्यकता
है
कि
हम
अपने
आने
वाली
पीढ़ियों
को
देश की
आजादी
के
लिए
निछावर
होने
वाले
वीर
क्रांतिकारी योद्धाओ
के
बहादुर
,त्याग
और
बलिदान
के
संस्मरण
याद दिलाए।
गूगल
और
विकिपीडिया
की
टेक्नोलॉजी
युक्त
भाग दौड़
में
तथ्य
तो
बहुत
ज्यादा
और
आसानी
से
मिल
जाते
हैं पर
भावनाएं
और
श्रद्धा
के
भाव
तो
हमें
अपने
अंदर विकसित
करने
होंगे
। आने
वाली
पीढ़ियों
के
अंदर
नमन
का बीज
अंकुरित
करना
हम
सब
का
परम
कर्तव्य
है
।
वैसे
आप भी
कभी-कभी
सोचते
होंगे
क्या
वास्तव
में
जिस
आजादी की
कल्पना
चंद्रशेखर
आजा
द ,भगत
सिंह
, लोकमान्य
बाल गंगाधर
तिलक
ने
अपने
सपने
के
आजाद
भारत
की
थी
क्या वास्तव
में
यह
वही
आजादी
है?
वैचारिक
रूप
से
चंद्रशेखर आजाद
जनता
का
राज्य
स्थापित
करना
चाहते
थे।
वह चाहते
थे
। मनुष्य
द्वारा
मनुष्य
का
शोषण
ना
हो
पर
क्या
यह सपना
पूर्ण
हो
सका?
क्या
आज
हम
शोषण
वादी
प्रवृत्तियों से
बाहर
निकल
पाए
हैं
आज
भी
हर
सबल
अपने
से कमजोर
को
दबाना
चाहता
है
फिर
वह
आर्थिक,राजनीतिक और
सामाजिक
तथा
लिंग
भेद
किसी
भी
आधार
पर
देख लीजिए।
अभी
जल्दी
हमने
जातीय
संघर्ष
में
कुछ
दबंग सामाजिक
पुरुषों के द्वारा
महिलाओं
को
निर्वस्त्र
कर
सड़क में
घुमाने
की
गतिविधि
देखी
गई है
। इसके
बावजूद
भी
आम जनता
, नीति
निर्माता
और
सरकारी
खामोश,
यह
देखकर प्रश्न
उठता
है
क्या
सच
में
हम
आजाद
हो
चुके
हैं?? महिलाओं
का
सम्मान
अस्तित्व और
खुली
हवा
में
सांस
लेने का
अधिकार
क्या
खत्म
हो
चुका
है।
क्या
इसी
देश
की कल्पना
की
थी
हमा
रे पूर्वजों ने, इसी
तरह
के
व्यवहार
के
लिए
देश
में
लाखों
शहीद
कुर्बान
हो
गए।
अभी
भी
यह
स्वतंत्रता
का
समर
शायद
खत्म
नहीं
हुआ
हम
सबको आर्थिक,
राजनीतिक
और
सामाजिक
,समरसता,
समानता और
स्वतंत्रता
के
लिए
अभी
लड़ना होगा और सच में सरकार आम जनता के साथ है तो अन्याय के खिलाफ कठोर
कानून बनाने का प्रावधान उन्हें करना आज के समय की परम आवश्यकता हो गई है। चंद्रशेखर आजाद जी का व्यक्तित्व और उनकी जीवनी कई अन्य महान योद्धाओं की जीवनी से जुड़ी हुई है यदि हम काकोरी के क्रांतिकारियों की चर्चा करते हैं तो उनकी चर्चा बिना चंद्र शेखर आजाद की चर्चा के पूर्ण नहीं हो सकती, नर नाहर के रूप में प्रसिद्ध चंद्रशेखर आजाद एक ऐसी हस्ती थी जिसके नाम से अंग्रेजी हुकूमत थरथर कांपती थी। क्रांतिकारियों के मसीहा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जहां भारतीय इतिहास का मजबूत वैचारिक स्तंभ थे जिन्होंने क्रांति को एक नई दिशा और दशा दी । वही चंद्रशेखर आजाद ने अपनी कूटनीति से आजादी की अंतिम पायदान को तय किया। आज हम आजाद हैं आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं पर हमें अपना उद्देश्य भूलना नहीं चाहिए। हम सब देशवासियों का यह परम कर्तव्य है कि हम अपने आस-पड़ोस अपने परिवार अपने समाज को समय-समय पर चर्चा, परिचर्चा संगोष्ठीयो तथा विभिन्न आयोजनों के द्वारा गुलामी के कष्ट को क्रांति के स्वर्णिम समय से जोड़ कर रखें। महान क्रांतिकारियों की वीरगाथा उसको चर्चा और परिचर्चा में लाते रहे ताकि हमारी भावी पीढ़ियां अमर बलिदान से रूबरू होती रहे और अन्याय अत्याचार के खिलाफ आज भी हम सबके खून में रवानी बनी रहे। सड़के खामोश हो जाती हैं तो संसद आवारा हो जाती है लोहिया जी ने भी शायद इसी परिपेक्ष में कहा होगा कि हमें इतिहास को भूलना नहीं चाहिए।
नौलेश कुमार द्विवेदी
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